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राजस्थान रा जिला रो नक्शो
(आभार राजस्थान पत्रिका)

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मनोहर सिंह राठौड

जन्म तारीख : 13 नवम्बर, तिलानेस (जिला-नागौरः)
जन्म स्थान : लक्ष्मण गढ
ठिकाणो : ई-28, सीरी कॉलोनी, पिलानी-333031,जिला-झुंझुनू (राजस्थान)

प्रकाशित हिन्दी पुस्तकें

कहो बाबोसा बात 1987,
वीरवर राव शेखा 2002,
उदयपुरवाटी दिग्दर्शन 2004,
फील गुड-2004
रेवासा की मधुरोपासना-2005
प्रेरणा गुंज-2005 (व्यक्तित्व एवं कृतित्व)
चिंतन से सृजन की ओर - 2005 (व्यक्त्तित्व एवं कृतित्व)
हमारे तीर्थंकर-2006
हनुमत महिमा
जय माँ करणी
उजली चादर-2008

प्रकाशित राजस्थानी पुस्तकें

रोसनी रा जीव 1983,
खिड़की 1989
गढ़ रौ दरवाजौ 1997,
यादां रौ झरोखौ 2002
राजस्थानी कहावतें (4 भाग)2003
मूंछां री मरोड़ (व्यंग्य-राजस्थानी) 2003
आध्यात्म रा आगीवाण आचार्य तुलसी-2008

नाटक
रूठी रानी (हिन्दी)2003

कविता

म्हारो गांव
संदर्भ- कानिया मानिया कुर्र, हनुमानगढ, पेज-1, अंक-4, जुलाई-सितम्बर 2005
प्रस्तुति- मनोहर सिंह राठौड, पिलाणी

ठण्डी-ठण्डी छियां सांतरी
प्यारौ-प्यारौ म्हारो गांव।
पणिहारयां पाणी नै जावै,
छम-छम नाचै म्हारो गांव।
खेत खळां में धन निपजावै
साग-पात सै देवै गांव।
आया-गया सूं हेत सांतरौ,
मिनखाचारौ मानै गांव।
झूठ-कपट अर बेईमानी,
आं सूं अळगौ म्हारो गांव।
हिन्दू मुस्लिम रव्है साथ मैं,
नेम निभावै म्हारौ गांव।
जग में सहर घणाई व्हैला,
पण सै सूं मीठो म्हारो गांव।

अनुवाद

रवीन्द्रनाथ री कहाणियां (राजस्थानी) 1998
पानी का रख-रखाव (गुजराती से हिन्दी) 2001
हिरणी री आंख (पंजाबी से राजस्थानी) 2002

बाल-साहित्य

म्हारी पोथी (राजस्थानी कविताएँ)
स्वतंत्रता सबसे बड़ी-2004
उत्तम जीवन-2004

संपादन

शेखावाटी को आधुनिक साहित्य (राजस्थानी) 1988
रसगंधा (हिन्दी कथा-संग्रह) 2001
उड़ान (हिन्दी कथा-संग्रह) 2007
जयमल जस जोत-2007

शीघ्र प्रकाश्य पुस्तकें

कारगिल कीर्ति (हिन्दी)
रामस्नेही संत जैमलदास
राजस्थानी प्रेम कथायें (संपादित-हिन्दी)
मेरी कहानियाँ (हिन्दी)
बलजीत री बीबी (कहानी-राजस्थानी)

अन्य लेखन

वानर मासिक बाल पत्रिका-हिन्दी से लेखन सन् 1968 में प्रारम्भ हुआ जो निरंतर गतिशील है। केन्द्रीय साहित्य अकादमी-दिल्ली, राजस्थानी अकादमी-बीकानेर, राजस्थान साहित्य अकादमी-उदयपुर के संग्रहो में तथा राजस्थानी कालजयी कहानियाँ, नारी मन की कहानियाँ, बाल मन की कहानियाँ, मरूधरा, सुरज उगाली, सीख, सरूपोत की पोथी, श्री शार्दूल सुयश, आज री राजस्थानी कहानियाँ, स्वतन्त्रता संग्राम के अछूते पन्ने, खिड़की के पार, अँचलांकूर आदि पुस्तकों व अनेक स्मारिका में रचनाएं संकलित।

संस्थागत अवदान- सेवाएँ

1. केन्द्रीय साहित्य अकादमी, दिल्ली द्वारा संचालित सात दिवसीय पोइट्स वर्कर्शाप, चण्डीगढ़ में राजस्थानी कवि के रूप में सम्मिलित-1977।
2. सीरी, पिलानी में हिन्दी परिषद् का गठन व सचिव पद भार-1985।
3. मरूधर हिन्दी प्रचार समिति, पिलानी का गठन व कई वर्षों में अध्यक्ष पद भार-1987।
4. राजस्थानी अकादमी, बीकानेर के सहयोग से पिलानी में साहित्यकार समारोह का आयोजन व संचालन-1987।
5. राजस्थानी अकादमी, बीकानेर के सहयोग में मुकन्दगढ़ में साहित्यकार समारोह का आयोजन एवं संचालन-1989।
6. केन्द्रीय सरकार द्वारा कम्प्यूटर शब्दावली कोश- हिन्दी, समिति हेतु चयन व कोश, निर्माण में सहयोग-1987।
7. अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक समारोहों की अध्यक्षता।
8. कवि सम्मेलनों में भागीदार व अनेक सम्मेलनों का संचालन।
9. सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक व साहित्यिक कार्यक्रमों का संचालन।
10. राजस्थानी अकादमी, बीकानेर की समारोह समिति हेतु तीन वर्षों के लिए सदस्य-1989-91।
11. राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर की समारोह समिति हेतु सदस्य-1989-90।
12. राजस्थानी अकादमी, बीकानेर के सर्वोच्च पुरस्कार-सूर्यमल्ल शिखर पुरस्कार की चयन समिति हेतु सदस्य-1991-92, 2002-03।
13. राजस्थानी अकादमी, बीकानेर की कार्यकारिणी हेतु राज्य सरकार द्वारा चयन 1992-94।
14. ज्ञान-विज्ञान के व्याख्यान विभिन्न कॉलेजों व संस्थाओं में।
15. अनेक संस्थाओं में आयोजित साहित्यिक, सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं की चयन समितियों हेतु सदस्य।
16. हिन्दी व राजस्थानी की पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 300 रचनाएँ प्रकाशित।
17. साहित्य अकादमी, दिल्ली के लिए सदस्य मनोनीत-1998-2002।
18. राजस्थानी अकादमी, बीकानेर की प्रकाशित पौथी सहायता समिति सदस्य-2002 से।

पुरस्कार

1. राज्य स्तरीय पर्यावरणीय प्रतियोगितओं में कहानी को श्रेष्ठ स्थान 1996-97, 1997-98।
2. राजस्थान रत्नाकार-दिल्ली द्वारा श्री महेन्द्र जाजोदिया पुरस्कार वर्ष की श्रेष्ठ राजस्थानी कृति रोसनी रा जीव पर-1985।
3. राजस्थान साहित्य अकादमी-उदयपुर द्वारा हनुमानगढ़ समारोह में सम्मानित-1987।
4. राजस्थानी अकादमी-बीकानेर द्वारा बिसाऊ समारोह में सम्मानित-1988।
5. काव्य लोक-जमशेदपुर द्वारा साहित्य सेवा के लिए काव्य भूषण की उपाधि से अलंकृत-1988।
6. राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर एवं कथा संस्था, जोधपुर द्वारा प्रान्तिय स्तर पर कहानीकार के रूप में सम्मानित-1995।
7. राजस्थानी अकादमी, बीकानेर द्वारा उदयपुरवाटी समारोह में सम्मानित-1996।
8. राजस्थानी व हिन्दी भाषा की सेवा के लिए श्री आदित्य विक्रम बिरला जयन्ती समारोह पर पिलानी की साहित्यक संस्थाओं द्वारा सम्मानित-1998।
9. राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर द्वारा गढ रौ दरवाजौ पुस्तक पर पहला मुरलीधर व्यास कथा पुरस्कार-1998।
10. जिला प्रशासन द्वारा हिन्दी साहित्य सेवा के लिए 15 अगस्त 1999 को सम्मानित।
11. केन्द्रीय सरकार की विज्ञान अनुसंधान संस्था-सीरी द्वारा साहित्य सेवा के लिए 21 सितम्बर 1999 को स्थापना दिवस समारोह में सम्मानित।
12. भारतीय बाल कल्याण संस्थान, कानपुर के सम्मान समारोह में डा. घासीराम वर्मा समाज सेवा समिति, झुंझुनु द्वारा साहित्यिक योगदान के लिए पिलानी में सम्मानित-17 अक्टूबर 1999
13. श्री क्षत्रिय प्रतिभा विकास एवं शोध संस्थान, अजमेर द्वारा राजस्थानी साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट ख्याति हेतु प्रान्तीय स्तर पर समाज गौरव अलंकरण से सम्मानित-9-1-2000
14. महाराष्ट्र दलित साहित्य अकादमी द्वारा 20वीं. शताब्दी उत्तम नागरिक पुरस्कार, मई-2000
15. सहस्राब्दी विश्व हिन्दी सम्मेलन, हिन्दी द्वारा राष्ट्रीय हिन्दी सेवा सहस्राब्दी सम्मान, 19 सितम्बर, 2000
16. महात्मा गाँधी फॉउन्डेशन समिति, झुंझुनू द्वारा गुणीजन सम्मान राजस्थानी लेखन हेतु 2 अक्टूबर, 2001
17. श्री द्वारका सेवा निधि, जयपुर द्वारा-वैद्य पं. ब्रजमोहन जोशी साहित्य पुरस्कार-2002
18. वीर दुर्गादास राठौड़ स्मृति समिति सम्मान (जोधपुर)-2003
19. राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर द्वारा राजस्थानी भाषा सेवा पुरस्कार-2003.
20. क्षत्रिय समाज, पिलानी द्वारा साहित्य सेवा के लिए सम्मानित-दीपावली 2003
21. हिमालय और हिन्दुस्तान पाठक मंच द्वारा राजस्थानी साहित्य भूषण-2004
22. राजस्थान पत्रिका कर्णधार सम्मान 2005-06
23. हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा विद्यावागीश सम्मान 2006
24. राजस्थानी विकास मंच संस्थान, जालौर द्वारा डी.आर.लिट. की मानद उपाधि 2006
25. 500वीं जयमल जयंती (मेड़ता सीटी) पर सम्मानित-2007
26. भारतेन्दु राजभाषा साहित्य शिरोमणि, भारतीय राजभाषा विकास संस्थान, देहरादुन 2007
27. विशेष राजभाषा विशिष्टता सम्मान, भारतीय राजभाषा विकास संस्थान, देहरादून-2007

 

विशेष

1. केन्द्रीय सरकार की संस्था-सीरी, पिलानी की ओर से विज्ञान के क्षेत्र में एक ट्रेनिंग कार्यक्रम में 10दिनों के लिए इंग्लैंड की यात्रा।
2.दूरदर्शन पर अनेक राजस्थानी परिचर्चाओं में भागीदारी।
3.आकाशवाणी से 50-55 रचनायें पिछले लगभग वर्षों में प्रसारित।

हॉबी

स्केचिंग, पेंटिंग, मूर्तिकला, हौम्योपैथी और लेखन।

संप्रति

केन्द्रीय सरकार की संस्था- सीरी, पिलानी में तकनीकी अधिकारी


गढ़ रौ दरवाजौ

सहर तो सहर हुवै अर गांव बस गांवई हुवै। कई गांव छोटा अर कई बड़ा। इयां आपणै भारत देस री घणकरी आबादी गावां मै ई बसै। आपां घणकरा गावं रा। आप आप रै धन्धै सारू सहरां मै बसग्या कै काठा फसम्या। इस्योई एक छोटौ सो गांव। वो आपरौ हो सकै अर म्हारौ भी। खैर वठै म्हारा बडैरा रैवता आया अर वठै म्हारौ जलम हुयो जद म्हारौई गांव मान लिरावौ। गांव रौ नांव तिलाणेस, है जकोई रैण देवौ भलाई, कै आप कोई सांतरौ नांव खुद सोच सकौ हो। बियाई नांव मैं काई इस्यो अटक्योड़ौ है? फगत बोलबा बतळाबा रौ एक अधार हुवै। जद सहरां मै जाबा आबाळा लोगां गावं री रीत नीत, बोल-चाल-स्वभाव, मान-मरजादा, अपणेस-ओळावा, आपणा- पराया, कुरब कायदा सगळा बदळ दिया अर कांई ठा कत्तीक छेड़-छाड़ ई रै साथ करी है जणां नांव बदल्यां ओ कांई दोरौ मान सी ?
खैर ऐ बातां ओर कदे। म्हारै गांव रौ एक गढ़ हो। बडौ सारौ दरवाजौ अर दरवाजै मै बड़तां असवाड़ै पसवाडै़ ऊंचा अर बडा़ बड़ा दरीखानां रै मांय दोन्यां कांनी एक- एक कोट्ड्यां। दरवाजै मै आगै पग दियां, दोन्यां कानी बडा-बडा चबूतरा जकां ऊपर छात घाल्योड़ी ही ओर दोन्यां कानी खुल्ला। बस अत्तोई गढ़ हो। इण रै मांय पन्द्रा नेड़ा राजपूत परिवार बस्योड़ा। गढ़ बारै ऊंचा ऊंचा दोय चबूतरा दोन्यां कांनी, जठै बैठर लोग हताई करै। सांमला आंगणा रा चौड़ै चौगान बीचै कऊं।, जठै चिलम तमाखू चालती रै वै। धूंवै रा गोट ऊठबौ करै अर जिणसूं ऊठती खसखसाट री खांसी भेळै गांव गळी, देस दिसावरां री नुंई पुराणी, इधखी अर छानै छुपकै री भांत भतीली बातां चालती रै वै। इयां वाणी टाबर सूं जवान अर पछै बूठा हूयवौ करै। पीढियां पसवाड़ौ लेवती रै वै।
गढ़ मांय बूढौ हू ज्यावै वीं रौ बासौ ओ दरवाजौ बण ज्यावौ। ऊन्याळै मैं चोड़ौ चौगान अर सियाळै मै दरीखानां जिंदाबाद। स्यांम - सुबह री रोट्यां बठैई आय ज्यावै नहीं जणां ऐ डोकरा आप आप रै बेटा रै धरां जाय धूजती- छीजती काया नै भाड़ौ देय आवै।
कऊं सारै आं डोकरां मांयलौ एक दो जणौ हर बगत बैठ्यो नीगै आ वै। ई गढ़ बारला चौक हूय न्यारा न्यारा मारगां सूं आधौ गांव नीसरै। आता जाता मिनख चिलम बीड़ी री दो फूक खांचबा रै लोभ मै, कै सरम संकैऊं आप आप री फुरसत हिसाब थोड़ी जेज आं सारै बैठै, पछै वै जा वै जा।
गढ़ री छात ऊपरलौ एक माळियौ जकै री खिड़क्यां, गुलमरां मै रंग रंगीला, भांत भंतीला काच जड्योड़ा आपरी न्यारी निकेवली छिब राखता। वो माळियौ, ऐ छात कोट्ङ्या बिना सार सम्भाळ रै सगळा पड्ग्या। गांव ठाकतर री रीत ही जतैई ऐ सही सलामत हा अब न्यारा न्यारा हक हकूकबहंट बंटवाड़ा हुयां पछै कुण तिथ पूछै? सगळी मान मरजादावां अर गढ मांयला पन्द्रा घरां री इज्जत राखी। सगां परसंग्यां मै, कै ब्याव सगायां मै मांयलां री इज्जत रैयगी अर बारै रौ ठरकौ जबरौ बण ई ज्यातौ। म्हां सगळां रौ ओ गढ़ अर गढ़ रौ कोई नीं, कोई नीं।
खैर ! ऐ बातां ओरूं कदे। अबार गढ री बात चालरी है। आं दिनां गढ रा किवाड़ सफा बोदा हूयग्या। चूळिया टूटर जमीं माथै किवाड़ टिकग्या, जकां नै दीवळ सूं बचाबा सारू वां रै नीचै मोटा मोटा भाटा लगा दिया। आँधी मेह री मार सूंमारीजता मारीजताई हाल ऐ किवाड़ कियां जियां ऊभा है थिर, अडोल अबोल। अब नै बंद हुवै नै सिरक सकै पण आधी आधी फुट री मोटाई रा ऐ किवाड़ आपरी कड़पाणं सूं ऊबा रैय हाल भी गढ़ अर गढ़ मांयलां री इज्जत राखै।
खैर ! आ लारलै फागण लागतै री बात। सियाळै री सरदी रा सिंवाळ नेडै़ निड़ास ई कोनी हा ! बूढा बडेरा आप आप री कामळां रो खोयला, कऊं सारै बैठतां पाण उतारै लाम्बा। आं दिनां बेमारी री बात चालै जद सगळाऊं पैली चैन जी रा बाप सुख जी रौ नांव धकै आवै।
एक जणौ बात पोळाई सुख जी सगळी सरदी घणीं दोरी काढी।
दूजौड़ो बात आगै बधाई अबकाळै ऐ मरसी। अब अंत आयग्यो।

    1. इयां कांई कैवै रै गैला बीसी ! दिन ऊग्यां पैली ?
    2.  अरै कैवूं कांई ? सगळै गांव नै आं रा आखा सांमै दीखै लाग्या। मगज सफा खराब हूयग्यो आं रौ।

जकैई दिन री बात सुख जी धरां चौक मै बैठ्या बैठ्या रोटी जीमै हा। चैन जी घर मै बड्यो जद वै निसकारौ न्हांकर निमळाई सूं बोल्या बेटा चैन!” सगळा जोर जोर सूं हाँसता- बतळाता सुणीजता। चौक मांय पग देतां पांण, जांणौ चिड्यां मै भाटौ न्हांक दियो हुवै। वै मांय रा मांय काठा उदास हू ज्याता। कदे कदास तो दो घड़ी बोलबा बतळाबा नै जीव करैई।
सुखी जी रोटी जीमबा बैठै वठै जाय बैठ्या। सगळा वांनै परायी निजरां तकै लाग्या। वै अत्तौई पूछ्यो-अरै कांई बात करै हा भाई ? जोर जोरऊ बारै तांणी हाँसी सुणीजै ही।
बडोड़ौ पोतो बोल्यो थांनै म्हे हांसता चोखा कोनी लाग्या कांई ?
बेटो चैन जी बात परोटतौ बोल्यो सफा गैलौ हौ। इयांई चकर-चकर करै। म्हैं आज टेसण माथै झूंमर मल जी सेठां रै मूंगा री बोर्यां न्हांकर आयो बूं। बा बात बतावै हो।
वै पोता रौ ओझाड़णौ भूल उमगीजता बोल्या काँई भाव बिक्या मूंग ? सावळई बिक्या हुसी।
- थां नै कांई करणौ, भावां रौ ? थे थांकी रोट्यां क्यूं जीमौ नीं। ओ सोच भावां तावां रौ म्हे मतैई करस्यां।
इयां माजणौ मारीज्यां पछै आगै बात करबा रौ मारग बंद हूयग्यो। मन मोळौ पड़ग्यो। चुपचाप गळै मैं टूंप्या देती रोटी रा कवा पांणी सूं गिटर बारै रवानै हूयग्या। वां रै बारणै बारै नीसरतां पांण पाछी खिलखिलाट सरू हूयगी।
बियां कसमसाट तो घणां दिनाऊं चालै ही। पण सफा अबोला घर रावीं दिन सूं हूयग्या जद सुखजी खराखरी आ कैया दी म्हारै जींवतांजी आ जमीन जायदाद थारै नांव कोनी करूं। म्हारै मर्यां पछै मतैई हू ज्यासी। थारै कनै एक ही बात रौ रबद रैवै कै जमीन म्हारै नांव करायद्यो। जमीन थारी ई है। म्हैं माथै लेय थोड़ौई मरस्यूं ?” आ बात बरतीज्यां पछै घर का टाबर तकातक परायी निजरां दैखै लाग्या।
वां नै लखायौ देखौ ! आपां आखी ऊमर, कुम्हार आवौ पकावै जियां घर रा टाबरां नै घणै जतन जापता सूं पाळ्या। घर री ऐक ऐक ईंट वास्तै कत्ता तरळा लिया। पेट काट काट नै ईं घर नै बणायो।
जद पछै रोट्यां बणती जकी सांमै सिरका देता। जींम जूठर चळू कर्यां पछै चौक मै बैठौ कै बारै जावौ, कोई बोल बतळावणनीं व्हैती। हळवां हळवां वै खुद अगाउ हूय टाबरां नै बतळाणा सरू कर्या। पछै बाप बेटै बिचै काम सारू बातां हुवै लागी।
लारली होळी सूं पैली बेटा नै ओरू कह्यो बेटा ! कीं कपड़ा लत्ता ल्या रै।
हां ! हां ! ल्यास्यांआ कैया बेटौ सारौकर रवानै हूयम्यो वां रै हियौ मै एक बात उथेल देती रैयगी कै कपड़ां री कोई बात कोयनी। मिनखां मै आपसरी मै अपणेस हुयां कपड़ा भलांई फाट्योड़ा हुवै। हेत री हताई दूजी हुवै।
एक हफ्तै पछै होळी आबाळी ही। बेटा नै एक दिन औरूं रोक्यो बेटा होळी आबाळी है। अब नुंवा कपड़ा ल्याणां है जका लिया। वै छोटक्या पोता नै नुंवा कपड़ा पैर्यां धूळ मैं लोटतां देख्यो हो।

बेटो वां सांमै खारी मीट सूं ताकतौ कह्यो हां थांका कपड़ा भी ल्यास्यां। आ कैय रवानै।
आ कपड़ा री बात ही। इण रै अलावा घणीं वार वै सोची, आज बेटा सू घर है घाटै नफै री बातां बतळास्यां। बतळायां जीव सोरौ हुवै। पण बेटा कनैटेम कठै अर नै वो सुणबौ चावै।
काल दिन ऊग्यां घर रै चौक मै बैठ्या वै चाय री उडीक करै हा। रात ठंडी हवा चाली जिण सूं सरदी बधगी ही। वै बातां मै मायतपणै री ऊंड़ी पुट देय नै बात सरू करी रात घणी ठंडी ठारी ही। हवा री सरदी ही। टाबरां रौ पूरौ पूरौ ध्यान राखज्यो नहीं जणां ऐ उठळीज ज्यावैला।
बेटो हूंटकैयर चुप हुयम्यो।
वै ओरूं एकर बात नै आगै बधावी म्हारै ईं कामळतीऊ सरदी कोनी ढबै ही। आखी रात सियां मर्या। काळजै री गड़गड़ी कोनी ढबै ही।
बेटो फटकारै ई टक्कौ सो जबाबा दे दियो थे खुद रजाई नै मांय मेलाय दी, जद म्हे कांई करां ? म्हे बरज्या जणां थे मान्याई कोयनी।
वै निसकारौ न्हांकर बतळावण रही गरज सूं बोली मै मिठास घोळता बोल्या आ खरी बात है रै भाई, कै रजाई म्हैं ई मांय मेलाय दी। म्हैं तो ई बाळनजोगै मौसम री बात कैऊं हूं। म्हारै कड्यां रौ दरद ई कीं बधग्यो।
बेटो बात री लड़ी वठैई काट दी चोखौ चोखौ आज रजाई रखवा देस्यां। अब थे रोटी जीमल्यो, आं नै क्यूं ठंडी करो ?
मन री बातां मन मै रैयगी। कैवणी चावै पण सुणै कुंण ? सगळा आंतरै अर वै सोचै लाग्या, बात रौ तार कठैऊ पोळावां ?
चैन सिंह कीं तावड़ीऊ तप्योड़ौ आयो हो। उचकर बोल्यो कांई कैवो हो ?
वै लाचारगी री चादर ओढता बोल्या बेटा म्हारै कुड़त्यो सेंमूदौ फाटग्यो। धोती खासा झिगदळी हूयगी। ल्याय नै देवै नीं।
म्हारै ई गाबा फाटग्या। कीं टाबरां रा कपड़ा लत्ता ल्याणां है, जद थांकाई लियावां। इयां कैया चैन जी मांयवाणी रवानै हूयग्यो।
कमरा मै ऊबी चैनी सिंह री बहु भींतर रै काठा कान चेप राख्या हा। धणीं रै मांय आंवता ई वा एक टुणकलौ फेंक्यो आं नै कठै गांवतरा करणा है, कै सगा परसंग्यां मै जांणौ है ? आखै दिन पड्या पड्या माचल्यो तोड़ळौ। आंख्यांऊ सावळ सूझै कोयनी, जकां नै सिणगार जोईजै ? टाबर आधा उघाड़ा फिरै अर आपां फाट्या टूट्या पैहरां वीं बात रौ आं नै कांई ठाह।
चैन जी मुठ्ठकंर जोड़ायत सांमौ देख्यो। आंख्या मै वीं री अक्कल रौ तिरवाळौ तिरै लाग्यो। पछै स्याफौ खूंटी रै टांग दियो। सुख जी बहू रा ऐ बोल आधा पड़दा बारै बैठ्या बैठ्या सुणऱ जमीं कुचरै लाग्या। रोटी आधी अधखली खायी ही पछै रवानै हूयग्या। हार्या थाक्या, उदास हतास लोगां रौ आसरौ ओ ई दरवाजौ। दरवाजै जाय पूग्या।
वां रै मन मै कान सिइया सूं एकलापणै रौ घोर अंधार पांख पसार राख्या हा। जोड़ायत रै जींवतां मन री पीड़, घाटै  - नफै री बात, कै कोई सुख दुख री बात कैय जीव सोरौ कर लेंवता। वीं रै मर्यां पछै हरेक बात मन मैं गुमड़ा री जियां बध्यां जावै, कुळ्यां जावै। सळी री जियां रड्क्यां जावै। कीं नै कैवै, कुंण सुणै ?
लारला दिनां वै आपरौ मन बिलमावण नै एकर टाबरां बिचै जाय बैठग्या। सगळा टाबर रमता रमता ऊबा ठबग्या।
दादौसा ! थे म्हांकै बिचै क्यूं आयग्या ! म्हे कोनी खेलां । थें म्हांकौ ख्याल बिगाड़ौ हो।
वै एकर खिस्योड़ी हांसी हांस्या अरे रे रम्मौ कनी। मैं थांनै रोकूं थोड़ौई हूं। मैं तो बेटा थांकी रामत देखूं हूं। मन मै सोच्यो म्हें तो थांका ख्याल तमासा, घर बार आखी ऊमर जचाया हूं।
दो तीन टाबर एकण साथ बोलस्या नहीं दादोसा थे थांका माचा माथै जाय सो ज्यावौ नीं।
आच्छो भाई थे कैस्यो जियां करस्यां। पछै वै मन मार नै रवानै हूयग्या। माचा माथै आडा हूय कमर पाघरी करी जिसके छोटकी पोत हांसती, कणां हळवा हळवा मुळकती खनै आय बोली दादोसा थे टाबरां री रामत खराब क्यूं कर्या करो हो ?
कियां बेटां, इयां कांई कैवै है तूं ?
कियां कांई कैऊं ? ए म्हारी मां कैवै ही सित्तेर बरसां रा बूढा डैण हूयग्या पण टाबरां बिचै जाय नै बैठ ज्यावै। बांनैई सावळ कोनी खेलण देवै। आं री सफा सुरळी निसरगी। दादोसा ! साच्यांणी बांकी सुरळी निकळगी कांई ? ओर थे बूडा डैंण कियां बणग्या ?
बाळ भोळप मै वा नान्ही पोती एकर ओरूं पूछ्यो हूं हूं कांई करो हो। बताओ नीं दादोसा डैण कांई हुवै ?
वै झूठी हाँसी, हाँसर लचकांणा पड़ता बोल्या डैंण म्हैं हूं नीं। अब सावण समझगीक?
पोती बिना कीं समझ्यां झूझळायोड़ी नाड़ रौ झटकौ देय बहीर हूयगी थे तो इयां ई करो हो। सावळ सी बात बताओ ई कोयनी।
दस दिनां पछऐ री बात। चैन जी माचा सारै आय ऊभग्यो कंवर सा परमा दादा रै घरांऊ बळद मांगौ नीं। दो दिनां रौ काम है। परमौ थाकौ धरम भाई बण्योड़ौ है।
वै सोची कै परमौ नट नीं ज्यावै ? घर रा अब साख पात, भायलाचारी निभावै ई कोनी जद की मूंडैऊ जाय ऱ मांगू?वै इयां गता धम मैं पजियोड़ा हा अर अती ताळ मै मांय बड़ता बेटा री गुद्दी निगह आयी।
आं बरसां मै, हांण हट्यां पछै इयांई हुवै लाग्यो। बेटो कैय देवै, कै बहू कुहाय देवै। जिण रौ अरथ, वौ काम करणौ है। नां नुकर कै सोचबा बिचारबा री गुंजयस नीं रै वै। जीव कदे कदे घणौ अमूझै पण करै कांई ? वां खनै गांठी मैं कांई रह्यो ? कोरी मोरी राय दे सकै, कै समझावणी दे सकै। जकी री आं कोई नै ई जरूरत कोयनी। जीवड़ा आपणौ बुढापौ आयम्यो, इयां सोचर जीव नै नेहचौ दिरावै।
कदे कदे सुख जी रोटी री बगत घर मै पग देता जद बेटो बहू, टाबर भागणौ चावौ। जद कद पोती पोता नै नेड़ै बिठाय बातां सरू करी, वै म्हांटा दड़ाछंट भाग छूटै दादौसा अबार म्हे खेलस्यां, थांकै कनै पछै आस्यां।
वां नै आं बरसां मै इयां लखावै जांणै च्यांरूं चौफेर बाळू रा टींबां बिचै एकाएक भूखा तिरस्या ऊबा रैयग्या हुवै। टीबा जांणै ऊंचा ऊठता जावै, ऊंचा ऊठता जावै। वै रेत मै तिसळ  मांय धसता जावै। बारै मीसरबा रौ मारग निगहनीं आवै।
जवानी वां रै भी इसी ई सांतरी आयी ही। सौख मौज रा कपड़ा लत्ता पैर्या हा। आप री जवानी मै वां जैड़ौ हँसोड़ दूजौ नीं हो। अब कनै ऊब र दो घड़ी कोई बात करणी नीं चावै। सगळां रै काम हूयग्या। बिन काम रा एकाएक बै ई है। कऊं सारौकर निसरतै गुमानै नै घणै अपणेस सूं बुलायो गुमाना ! आव रे अत्ती क्यां री उतावळ ? घड़ीक बैठर चिलम पीज्या।
गुमानौ बावड़तौ खुंज्या मांय सूं बीड़ी काढी। दो तीन फूंका वां साथ खांचर बीड़ी वां नै ई झिलायग्यो अबार कीं उतावळ मै हूं ठाकरां, पछै फुरसत मै हताई करस्यां। अर गुमानौ दड़ाछंट रवानै। वै जांणै फुरसत कठै अर कीं कनै ?
इयां कांई ठाहकती वार वां रै साथ आ ही हुयी कै मिनख नै सारै बिठाय मनड़ै री बातां करणी चावै, पण नेड़ौ कोई कोनी आवै। कदे थाकेलौ चढ्यां कै जुखाम मै जाकड़जीला हुयां दो घड़ी आँख्यां मीचर बिसराम लेणौ चावै, जद म्हांटा हाँसी ठठ्ठा करबाळा नेड़ै आय लागै। ऊदी पादरी मसखर्यां सरू करदेवै जद वै रीस मै आय कैवै थे आंतरा जावै रै मुरदां। म्हनै क्यूं हरान करौ हो ? दोयच घड़ी सोबाद्यो थांका बाबल्या नै, जकौ डील रौ थाकैलौ ऊतरै।

दूजौड़ौ कैवै डील निरोगौ है रै। जद नींद आवै।
पैलड़ौ औरूं चूंटक्यो भरै जणां जोरां मरदी आय रै! आय रै !! क्यूं कर्या करो हौ ?
तीजौड़ौ कैवै अरै यारौ इयां अफंड कर्यां बिना घरका सावळश सी घी चींणी री रोट्यां कोनी घालै।
इयां बात उठाळर एकण साथ सगळा जोरका हाँसण लाग ज्यावै। आं बातां रा वै लाई कांई पडूत्तर देवै। कुंण नै कैवे कै घी चींणी छोडर टेमूं-टेम ताती रोटी मिलबौ करै तो घणीं।
म्हैं जद जद गांव जाऊं टूट्या फूट्या गढ़ रौ दरवाजौ म्हनैं कियां जियां ऊभौ निगह आवै। जबरा, टणका किंवाड़ गढ़ मांयलां री इज्जत ढक राखी ही। आयोड़ा पांवणां नै गढ़ रा रंग ढंग दाय आ ज्याता अर टाबरो री सगाई पताई राजी राजी हू ज्याती। इण रै ईंट भाटा लगवाय बचावणै छोडऱ होळी दिवाळी कोई मिनख कळी सफेदी रा हाथ ई कोनी लगवाणा चावै। किंवाड़ धरती रै काठा अड़र थिर ऊभा है अर भींता रै आरै सारै छात रा कांकरा भाटां रै ढिगलै रौ सांतरौ स्हारौ आयग्यो। भीतां बापड़ी कियां जियां ऊभी है हाल।
खैर आ बात औरूं कदैई। अबार सुख जी री बात चाल री है। वै लाई एकलापणै मै गंथीज्योड़ा आप रै दुःख रा दिन ओछा करै। लारला दिनां आपरी ईंड़ा पीड़ा अर एकलापणां सू तंग आय नै मिंदर री मूरत सांमै ऊभा रैयग्या। आपरै दरद री कथा, वीं मूरत नै कैवै लाग्या। वां नै ईयां कर्यां मन मै सोरापणौ लखायो।
अब वां रौ माचौ गढ़ बारै चौक मै ढळ्योड़ौ रै वै। मिंदर रौ दरवाजौ सांमै सांम दीखै। वै हाथ जोड्यां सांवरा गिरधारी थारा भरोसा भारी, इयां कैय आपरै मन री सगळी बातां खळकाय देवै। अब मिंदर रा किंवाड़ खुल्ला हुवौ भलांई बंद, कै मारग बगतां नै कठैई अध बिचाळै याद आयां ऊभा रैय आपरी बात तीन तिरलौकी रा नाथ नै कह्या जावै। मारग बगता मिनखां री परवाह जाबक ई कोनी करै।
लोग कैवै सुख जी बहकै लाग्या। कोई कैवै सफा मगज खराब हूयग्यो, पैली ओ आदमी घणीं जोरकी बुद्धी रौ घणीं हो। कोई इयां कैवै घर मैं चल कोनी री। ठरकाळौ मिनख हो। आ नांजोगी बात सहन नीं हूबा सूं मगज खराब हूयग्यो।
गावं रै गुवाड़ मै हताई करता वां रा साथी संगळिया कह्या करै सुन्न बापरगी। अब आखरी नाकौ आयग्यो। कोई कीं कैवौ भलांई, सुखजी आपरै जींवण रौ आधार ढूंढ लियो। अब एकलापणै रा चूंटक्या कोनी भरीजै। म्हनै कांई ठाह क्यूं गढ़ दरवाजौ अर सुखजी सदा एकण साथ याद आवै। म्हारै गांव गयां आप भी इयांई सोचस्यो ऐड़ौ म्हारौ विचार है। सहर बस सहर हुवै अर गांव तो हुवै गावं ई।

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